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यदुवंशी शासकों की कुल देवी

यदुवंशी शासकों की कुल देवी

यदुवंशी शासकों की कुल देवी कैला देवी मंदिर राजस्थान स्थापना 955 ई. के आसपास राजा विजय पाल ने की थी जिनके बारे में कहा जाता है कि वे भगवान कृष्ण के वंशज थे। मध्य रेलवे के हिण्डौन सिटी रेलवे स्टेशन से 30 कि.मी. दूर स्थित करौली नामक नगर से 25 किमी. दूर काली सिल नदी के किनारे त्रिकूट पर्वत पर कैला देवी के मंदिर की स्थापना बाबा केदार गिरि द्वारा वर्ष 1430 में की गयी थी।
वर्ष 1432 में खींची के राजा मुकुंद दास द्वारा मठ बनवाया गया जिसे बाद में दूसरे राजाओं ने धीरे-धीरे विकसित किया।
वर्ष 1459 में मंदिर की समस्त भूमि को महाराजा चंद्रसेन ने अपने अधिकार में ले लिया।
महाराजा गोपालदास, धर्मपाल, गोपाल सिंह, प्रताप पाल, मदनपाल, जयसिंह पाल, अर्जुनपाल, तमरपाल, भीमपाल एवं गणेशपाल आदि दूसरे राजाओं ने जितना संभव हो सकता था, मंदिर का विस्तार कराया।
इस मंदिर का निर्माण राजा भोमपाल ने 1600 ई. में करवाया था।करौली एक जिला मुख्यालय है। 1818 में करौली राजपूताना एजेंसी का हिस्सा बना। 1947 में भारत की आजादी के बाद यहां के शासक महाराज गणेश पाल देव ने भारत का हिस्सा बनने का निश्चाय किया। 7 अप्रैल 1949 में करौली भारत में शामिल हुआ और राजस्थान राज्य का हिस्सा बना। यहां का सिटी पेलेस राजस्थान के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है। मदन मोहन जी का मंदिर देश-विदेश में बसे श्रृद्धालुओं के बीच बहुत लोकप्रिय है। अपने ऐतिहासिक किलों और मंदिरों के लिए मशहूर करौली दर्शनीय स्थंल है।
राजस्थान मे करौली यदुवंशी राजपूतो की सबसे बडी रियासत है। करौली राज्य यदुवंशी राजपुत्रो की वीर भूमि है। करौली राजघराने से निकल कर इनके वंशज भारत मे कई जगहो पर रहने लगे। मध्यप्रदेश मे जिला भिण्ड, मुरैना, ग्वालियर, मे इनके कई गढ़ है । भिण्ड मे - जैतपुरा मढी, बौहारा, बिरखडी, लहार, विजपुरा, रहावली, उढोतगढ़, मानपुरा, पीपरपुरा तथा मुरैना मे - सबलगढ, सालई, हीरापुरा, अटा, सुमावली, नरहेला आदि 500 गाँव है । महाराष्ट तथा U.P. मे आगरा , अलीगढ ,बुलंदशहर , ऐटा ,फिरोजाबाद , सिरसागंज आदि जगह इनके ठिकाने है ।
मुगल काल में करौली युवराज ने देवी मॉ से युद्व में विजयी होने की मनौती मॉगी और वो उस युद्व में विजयी हुए तो कैलादेवी करौली के यदुवंशी शासकों की कुल देवी के रूप में पूजी जाने लगी। करौली के शासकों ने मन्दिर को भव्य रूप दिया। नदी पर पुल बनबाया और सड़कों धर्मशालाओं, कुओं, बाबडी का निर्माण कराकर बीहड क्षेत्र का विकास करा दिया। बहुत समय से कैला देवी मन्दिर का एक प्रबंधन ट्रस्ट बना हुआ हैं जो मेलों के अलावा अन्य सारी व्यवस्थाओं की देखभाल करता है।
करौली के महाराजा मदनपाल जी के बारे मे कहा जाता है कि जब वो सिघं।सन पर बैठते थे तो अपने दौनो हाथ दो शेरो के उपर रखते थे।










कैला देवी मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर के निकट करौली जिले में स्थित, हिण्डौन सिटी रेलवे स्टेशन से 30 कि.मी. दूर, करौली ज़िला से लगभग 25 किमी दूर कैला गाँव में, कैला देवी एक प्राचीन मंदिर स्थापित है। मंदिर काली सिल नदी के किनारे “त्रिकूट पर्वत” पर स्थापित है।
श्री कृष्ण के जन्म पूर्व श्री “पराशक्ति” कन्या रूप में नंद गोप के घर प्रगट हुई थी। श्री वासुदेव जी द्धारा उस कन्या का काराग्रह में प्रवेश कराना और श्री कृष्ण नंदगोप के घर पहुचे । उक्त कन्या को क्रूर कंस द्धारा पछाडा गया तथा कन्या द्धारा हाथ से छूट कर आकाशवाणी की गयी। वही आदिशक्ति महामाया योगमाया इस भूमण्डल पर अवतरित होकर श्री कैला देवी के नाम से पूजि जा रही है।
राजस्थान और उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती शहर भरतपुर तथा बयाना के रेलवे केन्द्र के मध्य में एक स्टेशन कैला देवी का है, जिसे केवल झील का स्टेशन भी कहा जाता है। क्योंकि इसके निकट ही एक सुरम्य प्राकृतिक छटायुक्त पानी की एक झील भी है, जिसे मोती झील के नाम से जा इस झील के नाम के विषय में अनेक धारणाएँ हैं, जिनमें कुछ प्राचीन व्यक्तियों के अनुसार यह झील मोती प्राप्त करने के लिये प्रसिद्ध थी : कुछेक का कथन है कि इसमें भूतपूर्व भरतपुर नरेश का कोई मोती नामक पालतू कुत्ता डूब कर इस संसार से विदा हो गया था। अस्तु प्राकृतिक छटा के अतिरिक्त यह स्थान कैला देवी के मंदिर के लिये विख्यात है। जहाँ देवी के मेले त्यौहारों के विशेष समारोहों के अवसर पर देश के सुदूरवर्ती विभिन्न स्थानों से लाखों नर-नारी एकत्रित होते हैं। भक्तों का यह मेला यहाँ एक अनुपम इतिहास रखता है।
जहाँ प्रतिवर्ष मार्च - अप्रॅल माह में एक बहुत बड़ा मेला लगता है। इस मेले में राजस्थान के अलावा दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश के तीर्थ यात्री आते है,
एक समय की बात है राजा युधिष्ठर देवी की स्तुती कर रहे थे । तब भीमसेन ने हँसकर राजा से कहा कि हे राजन मैं तथा सारा संसार तुमको बहुत बडा योग्यवान मानते है किन्तु मेरी भूल हुई तुम कुछ भी नही जानते हो क्योकि यह प्रकृति जड है इसने संसार को मोह रखा है । चेतन पुरुष है । प्रकृति उसकी प्रिया है इस प्रकार प्राथना कर आपने जूतियो को सर पर चढा लिया है । यदि आप वाणी पर संयम नही कर सकते तो श्री महादेव जी की आराधना कीजिए इन वाक्यो को सुनकर देवी रुष्ट हो गयी । उसी समय भीमसेन अंधा हो गया राजा युधिष्टर से जब भीम ने पूछा कि ऐसा क्यो हो गया । तब राजा ने कहा कि तुमने माता जगदम्बा का अपमान किया है । इस तुम अंधे हो गये हो । तब भीमसेन ने माता जगदम्बा की स्तुती की भीम की स्तुती से प्रसन्न होकर देवी ने पुन: नेत्रो का वरदान दिया और कहा जब जब धर्म की हानी होती है तब तब मैं अवतार लेती हू । मैं कलियुग मे कैला नाम से जानी जाऊगी। मेरे भक्त मुझे केलेश्वरी नाम से जानेगे। इस प्रकार मेरा स्थान “लोहार्रा” मुकुन्ददास जी के पास श्री कैला देवी के नाम से विख्यात होगा । जहा मैं दुर्गम नामक दानव को काली सिल नदी के किनारे मारूगी ।
एक घर यदुवंशी राजपुत्र का था जो इस गँ।व के भौमियो राजपूत कहलाते थे।
मुकुन्ददास जी वासीखेरा नाम के ग्राम मे “गागरौन” नामक किले मे रहते थे। मुकुन्ददास जी ने जहा श्री चामुण्डा जी की मूर्ति की आराधना की थी । मुकुन्ददास जी सम्भवत: उक्त चम्बल पार कोटा राज्य की भूमि मुकुन्ददास जी स्वामी थे। और अब श्री कैला देवी के मठ से 5 मील दूरी पर दक्षिण भाग मे जो वासीखेरा नाम से ग्राम था, उस ग्राम के खण्डर है।

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